(एजेंसी के द्वारा), देश में लोकसभा चुनाव को लेकर उदघोष हो चुका हैं, इसी बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने को लेकर अनिश्चितता अभी बरकरार है। देश के गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री के तौर पर सेवाएं दे चुके 91 वर्षीय आडवाणी गांधीनगर सीट से छह बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। 1984 के लोकसभा चुनाव में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा के उदय का श्रेय आडवाणी को दिया जाता है।
उन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर आपत्ति जताई थी, तब से वह हाशिए पर जा चुके हैं। इस सवाल पर कि आडवाणी की अधिक उम्र के मद्देनजर क्या वह चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं,उनके निजी सचिव दीपक चोपड़ा ने कहा,इस पर अभी फैसला नहीं किया गया है… वह (प्रस्ताव) सामने आने पर निर्णय होगा। पार्टी सूत्रों ने कहा कि उम्मीदवारों के लिए कोई आयुसीमा तय नहीं है और पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति उम्मीदवारों के नाम तय करते समय इस बात को ध्यान में रखेगी कि उनके जीतने की संभावना कितनी है।
यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी ने आडवाणी से गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया है, चोपड़ा ने कहा, अभी तक न तो पार्टी ने उनसे संपर्क किया है और न ही उन्होंने पार्टी से संपर्क किया है। गुजरात भाजपा नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि आडवाणी अधिक उम्र होने के कारण चुनाव नहीं लड़ने का फैसला स्वयं ही कर सकते हैं।
आडवाणी ने यहां भाजपा पर्यवेक्षकों के सामने अपनी पारम्परिक गांधीनगर सीट पर अपना दावा पेश करने के लिए कोई अभिवेदन नहीं किया है। चोपड़ा ने कहा, उनके स्तर पर हमें ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर के समर्थन में 1992 में अपनी रथ यात्रा के जरिए भारतीय राजनीति का परिदृश्य बदल दिया था और भाजपा के विकास में अहम भूमिका निभाई थी। राज्य भाजपा प्रवक्ता भरत पंड्या ने कहा कि गांधीनगर के बारे में अंतिम निर्णय पार्टी का संसदीय बोर्ड लेगा।
उन्होंने कहा, पार्टी का संसदीय बोर्ड ही यह निर्णय ले सकता है कि आडवाणी चुनाव मैदान में उतरना हैं या नहीं। सूत्रों ने बताया कि पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग की मांग है कि आडवाणी के स्थान पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ना चाहिए। पहली बार 1991 में गांधीनगर सीट से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद आडवाणी ने 1998,1999,2004,2009 और2014 में भी इस सीट से जीत हासिल की।
आडवाणी रामजन्मभूमि आंदोलन का चेहरा बने जिसने भगवा दल के चुनावी और राजनीतिक भविष्य को आकार दिया। हालांकि 2009 में आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार थे, लेकिन पार्टी कांग्रेस से चुनाव हार गई थी। भाजपा के 2014 में सत्ता में आने के बाद आडवाणी को ‘मार्गदर्शक मंडल’ का सदस्य बना दिया गया। मंडल के गठन के बाद से उसकी एक भी बैठक नहीं हुई है।